वे तीन बार स्नान करने लगीं और इस तरह उनके घुँघराले काले-काले बाल क्रमश: भूरे पड़ गये। तपस्या के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे दुबला हो गया और वे पुराने वस्त्र धारण किये रहीं।
तात्पर्य
योगी, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ तथा सन्यासी दिन में कम से कम तीन बार—प्रात:, मध्याह्न तथा सायंकाल स्नान करते हैं। यहाँ तक कि कुछ गृहस्थ, विशेष रूप से ब्राह्मण भी इसका पालन करते हैं। देवहूति एक राजा की पुत्री और राजा तुल्य की पत्नी भी थीं। यद्यपि कर्दम मुनि राजा न थे, किन्तु अपने योग से उन्होंने देवहूति को दासियों समेत तथा समस्त ऐश्वर्य के साथ रखा। किन्तु उन्होंने अपने पति के रहते ही तपस्या सीख ली थी, अत: उन्हें संयम बरतने में कोई कठिनाई नहीं हुई। फिर भी अपने पति तथा पुत्र के चले जाने के बाद उन्हें कठिन तपस्या करनी पड़ी जिससे वे दुर्बल हो गईं। आध्यात्मिक जीवन में अधिक मोटा होना अच्छा नहीं है, अपितु मनुष्य को दुर्बल होना चाहिए, क्योंकि मोटा होने पर आध्यात्मिक ज्ञान की प्रगति में बाधा पहुँचती है। मनुष्य को न तो अधिक खाना चाहिए, न अधिक सोना चाहिए और न अधिक आराम करना चाहिए। ऐच्छिक रूप से मनुष्य को कम भोजन करना चाहिए तथा कम सोना चाहिए। ये ही किसी योग के साधन की विधियाँ हैं—चाहे वह भक्तियोग हो, ज्ञानयोग या हठयोग।
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