श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.33.2 
देवहूतिरुवाच
अथाप्यजोऽन्त:सलिले शयानं
भूतेन्द्रियार्थात्ममयं वपुस्ते ।
गुणप्रवाहं सदशेषबीजं
दध्यौ स्वयं यज्जठराब्जजात: ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
देवहूति: उवाच—देवहूति ने कहा; अथ अपि—और भी; अज:—ब्रह्मा जी; अन्त:-सलिले—जल में; शयानम्—लेटे हुए; भूत—भौतिक तत्त्व; इन्द्रिय—इन्द्रियाँ; अर्थ—विषय; आत्म—मन; मयम्—से व्याप्त; वपु:—शरीर; ते— तुम्हारा; गुण-प्रवाहम्—प्रकृति के तीन तत्त्वों की धारा का उद्गम; सत्—प्रकट; अशेष—सबों का; बीजम्—बीज; दध्यौ—ध्यान किया; स्वयम्—स्वयं; यत्—जिसके; जठर—उदर से; अब्ज—कमल-पुष्प से; जात:—उत्पन्न ।.
 
अनुवाद
 
 देवहूति ने कहा : ब्रह्माजी अजन्मा कहलाते हैं, क्योंकि वे आपके उदर से निकलते हुए कमल-पुष्प से जन्म लेते हैं और आप ब्रह्माण्ड के तल पर समुद्र में शयन करते रहते हैं। लेकिन ब्रह्माजी ने भी केवल अनन्त ब्रह्माण्डों के उद्गम स्त्रोत, आपका ध्यान ही किया।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा अज भी कहलाते हैं, क्योंकि अज का अर्थ है अजन्मा। जब भी हम किसी के जन्म की बात सोचते हैं, तो उसका कोई-न-कोई माता तथा पिता होना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से वह जन्म लेगा। किन्तु ब्रह्मा इस ब्रह्माण्ड के प्रथम प्राणी होने के नाते उन भगवान् के शरीर से सीधे उत्पन्न हुए जो गर्भोदकशायी विष्णु अर्थात् ब्रह्माण्ड के तल पर समुद्र में शयन करने वाले विष्णु नाम से ज्ञात है। देवहूति भगवान् को यह बताना चाह रही थीं कि ब्रह्मा जब विष्णु का दर्शन करना चाहते हैं, तो उन्हें भी आपका ध्यान करना होता है। उन्होंने कहा, “आप सारी सृष्टि के बीजस्वरूप हैं। यद्यपि ब्रह्मा सीधे आपसे उत्पन्न हुए हैं, किन्तु फिर भी जब वर्षों ध्यान करते हैं तब भी उन्हें आपके साक्षात् दर्शन नहीं हो पाते। आपका शरीर ब्रह्माण्ड के तल पर विपुल जल-राशि के भीतर लेटा है, अत: आप गर्भोदकशायी विष्णु कहलाते हैं।”

इस श्लोक में भगवान् के विराट शरीर की भी व्याख्या हुई है। यह शरीर दिव्य है और पदार्थ (जड़त्व) से अस्पृश्य। चूँकि यह संसार उनके शरीर से उत्पन्न हुआ है, अत: उनका शरीर सृष्टि के पूर्व भी विद्यमान था। निष्कर्ष यह निकला कि विष्णु का दिव्य शरीर भौतिक तत्त्वों से निर्मित नहीं है। विष्णु का शरीर अन्य समस्त जीवों के साथ-साथ भगवान् की शक्ति- स्वरूपा भौतिक प्रकृति का भी उद्गम है। देवहूति ने कहा, “आप संसार तथा समस्त उद्भूत शक्ति के मूलाधार हैं, अत: आप इस प्रकार से सांख्य दर्शन की व्याख्या करके माया के पाश से मेरा उद्धार कर रहे हैं, तो इतनी आश्चर्य की बात नहीं है। किन्तु मेरी कोख से आपका जन्म लेना अवश्य ही आश्चर्यजनक है, क्योंकि समस्त सृष्टि के उद्गम होने पर भी आपने कृपा करके मेरे पुत्र रूप में जन्म लिया है। यही सबसे आश्चर्यजनक है। आपका शरीर समस्त ब्रह्माण्ड का उद्गम है फिर भी आपने मुझ जैसी स्त्री के उदर से शरीर धारण किया। मेरे लिए यही अत्यधिक विस्मयजनक लगता है।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥