श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.33.21 
वनं प्रव्रजिते पत्यावपत्यविरहातुरा ।
ज्ञाततत्त्वाप्यभून्नष्टे वत्से गौरिव वत्सला ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
वनम्—वन को; प्रव्रजिते पत्यौ—पति के चले जाने पर; अपत्य-विरह—अपने पुत्र के विरह से; आतुरा—अत्यन्त दुखी; ज्ञात-तत्त्वा—सत्य का ज्ञान; अपि—यद्यपि; अभूत्—हो गई; नष्टे वत्से—बछड़ा मर जाने पर; गौ:—गाय; इव—के सदृश; वत्सला—स्नेहिल ।.
 
अनुवाद
 
 देवहूति के पति ने पहले ही गृहत्याग करके संन्यास आश्रम ग्रहण कर लिया था और तब उनके एकमात्र पुत्र कपिल ने घर छोड़ दिया। यद्यपि उन्हें जीवन तथा मृत्यु के सारे सत्य ज्ञात थे और यद्यपि उनका हृदय सभी प्रकार के मल से रहित था, किन्तु वे अपने पुत्र के जाने से इस तरह दुखी थीं जिस प्रकार कि बछड़े के मरने पर गाय दुखी होती है।
 
तात्पर्य
 जिस स्त्री का पति घर से दूर हो या संन्यासी हो गया हो उसे अत्यन्त दुखी नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसके पति का प्रतिनिधि, उसका पुत्र उसके पास रहता है। शास्त्रों का वचन है—आत्मैव पुत्रो जायते—पति के शरीर का प्रतिनिधित्व पुत्र करता है। यदि स्त्री के वयस्क पुत्र हो तो वह विधवा नहीं होती। जब कपिल मुनि उनके पास थे तो देवहूति अधिक विकल नहीं थीं, किन्तु उनके विदा होते ही वे अत्यन्त शोकाकुल हो उठीं। वे इसलिए शोक- संतप्त नहीं थीं कि कर्दम मुनि के साथ उनका संसारी सम्बन्ध था, अपितु भगवान् के प्रति अपने सत्यनिष्ठ प्रेम के कारण वे संतप्त थीं।

यहाँ उदाहरण दिया गया है कि देवहूति उस गाय के तुल्य हो गईं जिसने अपना बछड़ा खो दिया हो। अपने बछड़े से बिछुड़ कर गाय रात-दिन तडफ़ड़ाती है। इसी प्रकार देवहूति दुखी थीं और अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों से यही प्रार्थना करतीं “मेरे पुत्र को घर ला दो जिससे मैं जीवित रह सकूँ अन्यथा मैं मर जाऊँगी।” भगवान् के प्रति यह प्रगाढ़ स्नेह, यद्यपि अपने पुत्र प्रेम के रूप में प्रकट होता है, आध्यात्मिक दृष्टि से लाभप्रद होता है। अपने पुत्र के प्रति आसक्ति होने से मनुष्य इसी संसार में रहने के लिए बाध्य होता है, किन्तु वही आसक्ति भगवान् के प्रति होने पर उसे वैकुण्ठलोक में भगवान् की संगति में ले जाती है। हर स्त्री अपने को देवहूति के समान योग्य बनाकर भगवान् को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त कर सकती है। यदि भगवान् देवहूति के पुत्र रूप में प्रकट हो सकते हैं, तो वे अन्य किसी स्त्री के भी पुत्र रूप में उत्पन्न हो सकते हैं। हाँ, तभी जब वह स्त्री सुयोग्य हो। यदि किसी को पुत्र रूप में भगवान् मिल जाँय तो उसे इस संसार में सुपुत्र पालन का लाभ मिल सकता है और साथ ही वैकुण्ठलोक का लाभ, जिससे वह भगवान् का साक्षात् पार्षद बन सकता है।

 
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