श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.33.23 
ध्यायती भगवद्रूपं यदाह ध्यानगोचरम् ।
सुत: प्रसन्नवदनं समस्तव्यस्तचिन्तया ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
ध्यायती—ध्यानमग्न; भगवत्-रूपम्—भगवान् के स्वरूप को; यत्—जो; आह—उपदेश दिया; ध्यान-गोचरम्— ध्यान की वस्तु; सुत:—अपना पुत्र; प्रसन्न-वदनम्—प्रसन्नमुख से; समस्त—समग्र; व्यस्त—अंगों का; चिन्तया— अपने मन से ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् निरन्तर हँसमुख अपने पुत्र भगवान् कपिलदेव से अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक एवं विस्तारपूर्वक सुनकर देवहूति परमेश्वर के विष्णुस्वरूप का निरन्तर ध्यान करने लगीं।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥