ध्यायती—ध्यानमग्न; भगवत्-रूपम्—भगवान् के स्वरूप को; यत्—जो; आह—उपदेश दिया; ध्यान-गोचरम्— ध्यान की वस्तु; सुत:—अपना पुत्र; प्रसन्न-वदनम्—प्रसन्नमुख से; समस्त—समग्र; व्यस्त—अंगों का; चिन्तया— अपने मन से ।.
अनुवाद
तत्पश्चात् निरन्तर हँसमुख अपने पुत्र भगवान् कपिलदेव से अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक एवं विस्तारपूर्वक सुनकर देवहूति परमेश्वर के विष्णुस्वरूप का निरन्तर ध्यान करने लगीं।
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