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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  3.33.24-25 
भक्तिप्रवाहयोगेन वैराग्येण बलीयसा ।
युक्तानुष्ठानजातेन ज्ञानेन ब्रह्महेतुना ॥ २४ ॥
विशुद्धेन तदात्मानमात्मना विश्वतोमुखम् ।
स्वानुभूत्या तिरोभूतमायागुणविशेषणम् ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
भक्ति-प्रवाह-योगेन—निरन्तर भक्ति में लगे रहने से; वैराग्येण—वैराग्य द्वारा; बलीयसा—अत्यन्त प्रबल; युक्त- अनुष्ठान—उचित ढंग से कर्मों को करने से; जातेन—उत्पन्न; ज्ञानेन—ज्ञान से; ब्रह्म-हेतुना—ब्रह्म-साक्षात्कार होने से; विशुद्धेन—शुद्धिकरण से; तदा—तब; आत्मानम्—भगवान् को; आत्मना—मन से; विश्वत:-मुखम्—जिसका मुख चारों ओर घूमता है; स्व-अनुभूत्या—आत्म-साक्षात्कार से; तिर:-भूत—अप्रकट; माया-गुण—प्रकृति के गुणों का; विशेषणम्—विशेष ।.
 
अनुवाद
 
 उन्होंने भक्ति में गम्भीरतापूर्वक संलग्न रह कर ऐसा किया। चूँकि उनका वैराग्य प्रबल था, अत: उन्होंने मात्र शरीर की आवश्यकताओं को ग्रहण किया। वे ब्रह्म साक्षात्कार के कारण ज्ञान में व्यवस्थित हुईं, उनका हृदय शुद्ध हो गया, वे भगवान् के ध्यान में पूर्णत: निमग्न हो गईं और प्रकृति के गुणों से उत्पन्न सारी दुर्भावनाएँ समाप्त हो गईं।
 
 
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