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श्लोक 3.33.31  |
तद्वीरासीत्पुण्यतमं क्षेत्रं त्रैलोक्यविश्रुतम् ।
नाम्ना सिद्धपदं यत्र सा संसिद्धिमुपेयुषी ॥ ३१ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत्—वह; वीर—हे वीर विदुर; आसीत्—था; पुण्य-तमम्—सर्वाधिक पवित्र; क्षेत्रम्—स्थान; त्रै-लोक्य—तीनों लोकों में; विश्रुतम्—विख्यात; नाम्ना—नाम से; सिद्ध-पदम्—सिद्ध पद; यत्र—जहाँ; सा—उसने (देवहूति ने); संसिद्धिम्—सिद्धि; उपेयुषी—प्राप्त की ।. |
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अनुवाद |
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हे विदुर, जिस स्थान पर देवहूति ने सिद्धि प्राप्त की वह स्थान अत्यन्त पवित्र माना जाता है। यह तीनों लोकों में सिद्धपद के नाम से विख्यात है। |
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