हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.33.31 
तद्वीरासीत्पुण्यतमं क्षेत्रं त्रैलोक्यविश्रुतम् ।
नाम्ना सिद्धपदं यत्र सा संसिद्धिमुपेयुषी ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
तत्—वह; वीर—हे वीर विदुर; आसीत्—था; पुण्य-तमम्—सर्वाधिक पवित्र; क्षेत्रम्—स्थान; त्रै-लोक्य—तीनों लोकों में; विश्रुतम्—विख्यात; नाम्ना—नाम से; सिद्ध-पदम्—सिद्ध पद; यत्र—जहाँ; सा—उसने (देवहूति ने); संसिद्धिम्—सिद्धि; उपेयुषी—प्राप्त की ।.
 
अनुवाद
 
 हे विदुर, जिस स्थान पर देवहूति ने सिद्धि प्राप्त की वह स्थान अत्यन्त पवित्र माना जाता है। यह तीनों लोकों में सिद्धपद के नाम से विख्यात है।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥