भागवत पुराण » स्कन्ध 3: यथास्थिति » अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप » श्लोक 33 |
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| | श्लोक  | कपिलोऽपि महायोगी भगवान्पितुराश्रमात् ।
मातरं समनुज्ञाप्य प्रागुदीचीं दिशं ययौ ॥ ३३ ॥ | | शब्दार्थ | कपिल:—भगवान् कपिल; अपि—निश्चय ही; महा-योगी—ऋषि; भगवान्—भगवान्; पितु:—अपने पिता के; आश्रमात्—कुटी में; मातरम्—अपनी माता से; समनुज्ञाप्य—आज्ञा लेकर; प्राक्-उदीचीम्—उत्तर-पूर्व, ईशानकोण; दिशम्—दिशा को; ययौ—चला गया ।. | | अनुवाद | | हे विदुर, महामुनि भगवान् कपिल अपनी माता की आज्ञा से अपने पिता का आश्रम छोडक़र उत्तरपूर्व दिशा की ओर चले गये। | | |
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