जब वे उत्तर दिशा की ओर जा रहे थे तो चारणों, गन्धर्वों, मुनियों तथा अप्सराओं ने उनकी स्तुति की और सब प्रकार से उनका सम्मान किया। समुद्र ने उनका पूजन किया और रहने के लिए स्थान दिया।
तात्पर्य
कहा जाता है कि कपिल मुनि पहले हिमालय की ओर गये और वहाँ गंगा के उद्गम की खोज की। फिर वे गंगा के मुहाने पर समुद्र में आये जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहते हैं। सागर ने उन्हें रहने के लिए स्थान दिया जिसे आज भी गंगा-सागर कहते हैं जहाँ गंगा नदी समुद्र से मिलती है। यह स्थान गंगा-सागर तीर्थ कहलाता है और आज भी लोग वहाँ जाकर सांख्य दर्शन के संस्थापक कपिल को नमस्कार करते हैं। दुर्भाग्वश किसी एक पाखंडी ने इस सांख्य प्रणाली की मनमानी व्याख्या की और उसका भी नाम कपिल है, किन्तु वह प्रणाली श्रीमद्भागवत में वर्णित कपिल के सांख्य से मेल नहीं खाती।
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