श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  3.33.36 
एतन्निगदितं तात यत्पृष्टोऽहं तवानघ ।
कपिलस्य च संवादो देवहूत्याश्च पावन: ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
एतत्—यह; निगदितम्—कहा गया; तात—हे विदुर; यत्—जो; पृष्ट:—पूछे जाने पर; अहम्—मैंने; तव—तुम्हारे द्वारा; अनघ—हे पापरहित विदुर; कपिलस्य—कपिल की; च—तथा; संवाद:—वार्ता; देवहूत्या:—देवहूति की; च—तथा; पावन:—शुद्ध ।.
 
अनुवाद
 
 हे पुत्र, तुम्हारे पूछे जाने पर मैंने तुम्हें बताया। हे पापरहित, कपिलदेव तथा उनकी माता के वृत्तान्त तथा उनके कार्यकलाप समस्त वार्ताओं में शुद्धतम् हैं।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥