कपिलदेव तथा उनकी माता के व्यवहारों का विवरण अत्यन्त गोपनीय है और जो भी इस वृत्तान्त को सुनता या पढ़ता है, वह गरुड़ध्वज भगवान् का भक्त बन जाता है और बाद में उनकी दिव्य प्रेमा-भक्ति में प्रवृत्त होने के लिए भगवद्धाम में प्रवेश करता है।
तात्पर्य
कपिल तथा उनकी माता देवहूति का यह वृत्तान्त इतना पूर्ण तथा दिव्य है कि यदि कोई इसे केवल सुनता या पढ़ता है, तो उसे जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि वह भगवान् के चरणकमल की सेवा में लग जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि देवहूति ने मानव जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त की जिन्होंने भगवान् को पुत्र रूप में प्राप्त करके कपिल के उपदेशों का सुचारु रूप से पालन किया।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के ततृीय स्कन्ध के अन्तर्गत “कपिल के कार्यकलाप” नामक तैंतीसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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