श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.33.9 
मैत्रेय उवाच
ईडितो भगवानेवं कपिलाख्य: पर: पुमान् ।
वाचाविक्लवयेत्याह मातरं मातृवत्सल: ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; ईडित:—प्रशंसा किये जाने पर; भगवान्—भगवान् ने; एवम्—इस प्रकार; कपिल- आख्य:—कपिल नामक; पर:—परम; पुमान्—पुरुष; वाचा—शब्दों से; अविक्लवया—गम्भीर; इति—इस प्रकार; आह—उत्तर दिया; मातरम्—अपनी माता को; मातृ-वत्सल:—अपनी माता का दुलारा ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार अपनी माता के शब्दों से प्रसन्न होकर मातृवत्सल भगवान् कपिल ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया।
 
तात्पर्य
 चूँकि भगवान् सर्व-पूर्ण हैं, अत: अपनी माता के प्रति उनका स्नेह का प्रदर्शन भी पूर्ण था। अपनी माता के शब्दों को सुनकर उन्होंने अत्यन्त आदरपूर्वक गम्भीरता तथा शिष्टता के साथ उत्तर दिया।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥