हे प्रभु, जो भक्तगण आपके चरणकमलों की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगे हुए हैं उन्हें धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष—इन चार पुरुषार्थों के क्षेत्र में कुछ भी प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती। किन्तु हे भूमन्, जहाँ तक मेरा सम्बन्ध हैं मैंने आपके चरणकमलों की प्रेमाभक्ति में ही अपने को लगाना श्रेयस्कर माना है।
तात्पर्य
जो लोग वैकुण्ठलोक में भगवान् के सान्निध्य में हैं, वे भगवान् के सारे शारीरिक गुण प्राप्त कर लेते हैं और भगवान् विष्णु जैसे ही प्रतीत होते हैं। ऐसी मुक्ति सारूप्य-मुक्ति कहलाती है, जो पाँच प्रकार की मुक्तियों में से एक है। भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगे भक्तगण सायुज्य-मुक्ति को कभी भी स्वीकार नहीं करते जो ब्रह्मज्योति में तादात्मय है। भक्तगण न केवल मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, अपितु धर्म, अर्थ, अथवा काम के क्षेत्र में स्वर्ग में स्थित देवताओं के स्तर की कोई भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं किन्तु उद्धव जैसे भक्त को ऐसी समस्त सुविधाएँ स्वीकार्य नहीं हैं। शुद्ध भक्त एकमात्र भगवान् की सेवा में लगा रहना चाहता है; वह अपने निजी लाभ पर विचार नहीं करता।
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