श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 4: विदुर का मैत्रेय के पास जाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.4.22 
यत्र नारायणो देवो नरश्च भगवानृषि: ।
मृदु तीव्रं तपो दीर्घं तेपाते लोकभावनौ ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
यत्र—जहाँ; नारायण:—भगवान्; देव:—अवतार से; नर:—मनुष्य; च—भी; भगवान्—स्वामी; ऋषि:—ऋषि; मृदु— मिलनसार; तीव्रम्—कठिन; तप:—तपस्या; दीर्घम्—दीर्घकाल; तेपाते—करते हुए; लोक-भावनौ—सारे जीवों का मंगल ।.
 
अनुवाद
 
 वहाँ बदरिकाश्रम में नर तथा नारायण ऋषियों के रूप में अपने अवतार में भगवान् अनादिकाल से समस्त मिलनसार जीवों के कल्याण हेतु महान् तपस्या कर रहे हैं।
 
तात्पर्य
 हिमालय स्थित बदरिकाश्रम नर-नारायण ऋषियों का धाम है और हिन्दुओं का एक महान् तीर्थस्थल है। अभी भी लाखों पवित्र हिन्दू लोग भगवान् के अवतार नर नारायण के प्रति श्रद्धा अर्पित करने जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पाँच हजार वर्ष पूर्व भी उद्धव जैसे पवित्र व्यक्ति इस भारी स्थल में जाते थे और उस समय भी यह अत्यन्त प्राचीन स्थान के नाम से विख्यात था। सामान्य लोगों के लिए इस विशेष तीर्थस्थल तक पहुँच पाना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि हिमालय में यह विकट जगह पर स्थित है, जो प्राय: वर्ष भर बर्फ से ढकी रहती है। ग्रीष्म-ऋतु के कुछ महीनों में ही महान् व्यक्तिगत असुविधा सहन करके लोग इस स्थान को जा सकते हैं। इस पृथ्वी पर चार धाम अर्थात् ईश्वर के राज्य हैं, जो आध्यात्मिक आकाश के लोकों के प्रतीक हैं जिनमें ब्रह्मज्योति तथा वैकुण्ठलोक आते हैं। ये चार धाम हैं—बदरिकाश्रम, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी तथा द्वारका। श्रद्धालु हिन्दू आध्यात्मिक साक्षात्कार की सिद्धि हेतु उद्धव जैसे भक्तों के चरणचिह्नों का अनुसरण करते हुए अब भी इन सभी पवित्र स्थानों में जाते हैं।
 
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