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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 4: विदुर का मैत्रेय के पास जाना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.4.24 
स तं महाभागवतं व्रजन्तं कौरवर्षभ: ।
विश्रम्भादभ्यधत्तेदं मुख्यं कृष्णपरिग्रहे ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
स:—विदुर ने; तम्—उद्धव से; महा-भागवतम्—भगवान् का महान् भक्त; व्रजन्तम्—जाते हुए; कौरव-ऋषभ:—कौरवों में सर्वश्रेष्ठ; विश्रम्भात्—विश्वास वश; अभ्यधत्त—निवेदन किया; इदम्—यह; मुख्यम्—प्रधान; कृष्ण—भगवान् कृष्ण की; परिग्रहे—भगवद्भक्ति में ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् के प्रमुख तथा अत्यन्त विश्वस्त भक्त उद्धव जब जाने लगे तो विदुर ने स्नेह तथा विश्वास के साथ उनसे प्रश्न किया।
 
तात्पर्य
 विदुर उद्धव से काफी बड़े थे। पारिवारिक सम्बन्ध में उद्धव कृष्ण के समकालीन भाई थे जबकि विदुर कृष्ण के पिता वसुदेव की उम्र के थे। किन्तु उद्धव उम्र में कम होते हुए भी भगवद्भक्ति में अत्यधिक बढ़े-चढ़े थे, इसीलिए उन्हें यहाँ पर भगवान् के भक्तों में प्रमुख कहा गया है। विदुर को इसका विश्वास था, अत: उन्होंने उद्धव को उसी उच्चतर श्रेणी का मान कर सम्बोधित किया। दो भक्तों के बीच शिष्ट बर्ताव की यही रीति है।
 
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