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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 4: विदुर का मैत्रेय के पास जाना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.4.3 
भगवान् स्वात्ममायाया गतिं तामवलोक्य स: ।
सरस्वतीमुपस्पृश्य वृक्षमूलमुपाविशत् ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
भगवान्—भगवान्; स्व-आत्म-मायाया:—अपनी अन्तरंगा शक्ति द्वारा; गतिम्—अन्त; ताम्—उसको; अवलोक्य—देखकर; स:—वे (कृष्ण); सरस्वतीम्—सरस्वती नदी का; उपस्पृश्य—जल का आचमन करके; वृक्ष-मूलम्—वृक्ष की जड़ के पास; उपाविशत्—बैठ गये ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् श्रीकृष्ण अपनी अन्तरंगा शक्ति से (अपने परिवार का) भावी अन्त देखकर सरस्वती नदी के तट पर गये, जल का आचमन किया और एक वृक्ष के नीचे बैठ गये।
 
तात्पर्य
 यदुओं तथा भोजों के उपर्युक्त समस्त कार्य भगवान् की अन्तरंगा शक्ति द्वारा सम्पन्न हुए, क्योंकि वे अपने अवतार के उद्देश्य को पूरा कर लेने के बाद उन सबों को अपने-अपने धामों को भेज देना चाहते थे। वे सभी उनके पुत्र-पौत्र थे और उन्हें भगवान् के पैतृक स्नेह द्वारा पूर्ण संरक्षण प्राप्त था। भगवान् के समक्ष उनका विनाश किस तरह हो सका, इसका उत्तर इस श्लोक में दिया गया है। प्रत्येक कार्य स्वयं भगवान् द्वारा सम्पन्न किया गया। (स्वात्ममायाया:) भगवान् के पारिवारिक जन या तो उनके स्वांश अवतार थे या स्वर्ग-लोकों के देवता थे; अतएव अपने प्रस्थान के पूर्व उन्होंने अपनी अन्तरंगा शक्ति से उन्हें पृथक् कर दिया। उन्हें अपने-अपने धामों में भेजे जाने के पूर्व, प्रभास नामक पवित्र स्थान पर भेजा गया जहाँ उन्होंने पुण्यकर्म किये और भोजन किया तथा जी भर कर मदपान किया। इसके बाद उन्हें अपने अपने धाम वापस भेजे जाने की व्यवस्था की गई, जिससे अन्य लोग यह देख सकें कि शक्तिशाली यदुवंश अब इस जगत में नहीं रहा। पिछले श्लोक में अनुज्ञात शब्द महत्त्वपूर्ण है, जो यह सूचित करता है कि सम्पूर्ण घटनाक्रम की व्यवस्था भगवान् द्वारा की गई थी। भगवान् की ये विशिष्ट लीलाएँ उनकी बहिरंगा शक्ति अथवा भौतिक प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं हैं। उनकी अन्तरंगा शक्ति का ऐसा प्रदर्शन शाश्वत है, अतएव यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि यदु तथा भोज वंशी सामान्य भ्रातृघाती युद्ध में उन्मत्तावस्था में मरे। श्रील जीव गोस्वामी ने इन घटनाओं की टीका जादूगरी की कला के रूप में की है।
 
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