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श्लोक 3.4.36  |
कालिन्द्या: कतिभि: सिद्ध अहोभिर्भरतर्षभ ।
प्रापद्यत स्व:सरितं यत्र मित्रासुतो मुनि: ॥ ३६ ॥ |
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शब्दार्थ |
कालिन्द्या:—यमुना के तट पर; कतिभि:—कुछ; सिद्धे—बीत जाने पर; अहोभि:—दिन; भरत-ऋषभ—हे भरत वंश में श्रेष्ठ; प्रापद्यत—पहुँचा; स्व:-सरितम्—स्वर्ग की गंगा नदी; यत्र—जहाँ; मित्रा-सुत:—मित्र का पुत्र; मुनि:—मुनि ।. |
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अनुवाद |
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यमुना नदी के तट पर कुछ दिन बिताने के बाद स्वरूपसिद्ध आत्मा विदुर गंगा नदी के तट पर पहुँचे जहाँ मैत्रेय मुनि स्थित थे। |
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इस प्रकार श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कंध के अन्तर्गत ‘विदुर का मैत्रेय के पास जाना” नामक चौथे अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए। |
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