श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 4: विदुर का मैत्रेय के पास जाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.4.4 
अहं चोक्तो भगवता प्रपन्नार्तिहरेण ह ।
बदरीं त्वं प्रयाहीति स्वकुलं संजिहीर्षुणा ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
अहम्—मैं; च—तथा; उक्त:—कहा गया; भगवता—भगवान् द्वारा; प्रपन्न—शरणागत का; आर्ति-हरेण—कष्टों को हरण करने वाले के द्वारा; ह—निस्सन्देह; बदरीम्—बदरी; त्वम्—तुम; प्रयाहि—जाओ; इति—इस प्रकार; स्व-कुलम्—अपने ही परिवार को; सञ्जिहीर्षुणा—विनष्ट करना चाहा ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् उनके कष्टों का विनाश करते हैं, जो उनके शरणागत हैं। अतएव जब उन्होंने अपने परिवार का विनाश करने की इच्छा की तो उन्होंने पहले ही बदरिकाश्रम जाने के लिए मुझसे कह दिया था।
 
तात्पर्य
 उद्धव जब द्वारका में थे तो उन्हें उन कष्टों से बचने के लिए सचेत किया गया था, जो भगवान् के तिरोधान तथा यदुवंश के विनाश के बाद आने वाले थे । उन्हें बदरिकाश्रम जाने की सलाह दी गई थी, क्योंकि वहाँ वे नर-नारायण के भक्तों का सान्निध्य प्राप्त कर सकते थे और उनकी भक्ति की संगति में वे कीर्तन, श्रवण, ज्ञान तथा वैराग्य की अपनी उत्सुकता में वृद्धि कर सकते थे।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥