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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.5.16 
स विश्वजन्मस्थितिसंयमार्थे
कृतावतार: प्रगृहीतशक्ति: ।
चकार कर्माण्यतिपूरुषाणि
यानीश्वर: कीर्तय तानि मह्यम् ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—भगवान्; विश्व—ब्रह्माण्ड; जन्म—सृष्टि; स्थिति—भरण-पोषण; संयम-अर्थे—पूर्ण नियंत्रण की दृष्टि से; कृत—स्वीकृत; अवतार:—अवतार; प्रगृहीत—सम्पन्न किया हुआ; शक्ति:—शक्ति; चकार—किया; कर्माणि—दिव्यकर्म; अति-पूरुषाणि— अतिमानवीय; यानि—वे सभी; ईश्वर:—भगवान्; कीर्तय—कृपया कीर्तन करें; तानि—उन सबों का; मह्यम्—मुझसे ।.
 
अनुवाद
 
 कृपया उन परम नियन्ता भगवान् के समस्त अतिमानवीय दिव्य कर्मों का कीर्तन करें जिन्होंने विराट सृष्टि के प्राकट्य तथा पालन के लिए समस्त शक्ति से समन्वित होकर अवतार लेना स्वीकार किया।
 
तात्पर्य
 निस्सन्देह, विदुर कृष्ण के विषय में विशेष रूप से सुनने के अत्यन्त उत्सुक थे, किन्तु वे भावाभिभूत थे, क्योंकि कृष्ण ने इस दृश्य जगत से हाल ही में प्रयाण किया था। अतएव विदुर ने उनके उन पुरुष अवतारों के विषय में सुनना चाहा, जिन्हें वे विराट जगत की सृष्टि तथा भरण-पोषण के लिए पूर्ण शक्तियों समेत प्रकट करते हैं। पुरुष अवतारों के कार्यकलाप भगवान् के कार्यों के विस्तार मात्र होते हैं। विदुर ने मैत्रेय को यह संकेत दिया, क्योंकि मैत्रेय यह तय नहीं कर पा रहे थे कि कृष्ण के कार्यों के किस अंश का कीर्तन किया जाय।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥