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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.5.17 
श्री शुक उवाच
स एवं भगवान् पृष्ट: क्षत्‍त्रा कौषारवो मुनि: ।
पुंसां नि:श्रेयसार्थेन तमाह बहुमानयन् ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा; स:—वह; एवम्—इस प्रकार; भगवान्—महर्षि; पृष्ट:—पूछे जाने पर; क्षत्त्रा—विदुर द्वारा; कौषारव:—मैत्रेय; मुनि:—महर्षि; पुंसाम्—सारे लोगों के लिए; नि:श्रेयस—महानतम कल्याण; अर्थेन— के लिए; तम्—उसको; आह—वर्णन किया; बहु—अत्यधिक; मानयन्—सम्मान करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 शुकदेव गोस्वामी ने कहा : विदुर का अत्यधिक सम्मान करने के बाद विदुर के अनुरोध पर समस्त लोगों के महानतम कल्याण हेतु महर्षि मैत्रेय मुनि बोले।
 
तात्पर्य
 महर्षि मैत्रेय मुनि को यहाँ पर भगवान् कहा गया है, क्योंकि विद्या तथा अनुभव में वे सामान्य मनुष्यों से आगे बढ़ चुके थे। अत: विश्व के लिए महानतम सेवा का उनका चुनाव प्रामाणिक माना गया है। सम्पूर्ण मानव समाज की समग्र कल्याण सेवा तो भगवान् की भक्तिमय सेवा है और विदुर के अनुरोध पर मुनि ने उसका बहुत ही उपयुक्त रुप से वर्णन किया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥