विदुर ने कहा : हे महर्षि, इस संसार का हर व्यक्ति सुख प्राप्त करने के लिए सकाम कर्मों में प्रवृत्त होता है, किन्तु उसे न तो तृप्ति मिलती है न ही उसके दुख में कोई कमी आती है। विपरीत इसके ऐसे कार्यों से उसके दुख में वृद्धि होती है। इसलिए कृपा करके हमें इसके विषय में हमारा मार्गदर्शन करें कि असली सुख के लिए कोई कैसे रहे?
तात्पर्य
विदुर ने मैत्रेय से कुछ सामान्य प्रश्न पूछे, किन्तु उनका मूल अभिप्राय यह नहीं था। उद्धव ने विदुर से मैत्रेय मुनि के पास जाकर भगवान् के नाम, यश, गुण, रूप, लीलाओं, पार्षद इत्यादि के सारे सत्यों के विषय में जिज्ञासा करने के लिए कहा था, अतएव जब विदुर मैत्रेय के पास पहुँचे तो उन्हें केवल भगवान् के विषय में पूछना चाहिए था। किन्तु स्वाभाविक विनयशीलतावश उन्होंने एक दम भगवान् के विषय में नहीं पूछा, प्रत्युत ऐसे विषय पर प्रश्न पूछा जो जनसामान्य के लिए अत्यधिक महत्त्व का हो सकता था। कोई सामान्य मनुष्य भगवान् को नहीं समझ सकता। सर्वप्रथम, उसे माया के वशीभूत अपने जीवन की असली स्थिति जाननी चाहिए। मोह में आकर मनुष्य सोचता है कि वह मात्र सकाम कर्मों के द्वारा सुखी हो सकता है, किन्तु होता यह है कि मनुष्य कर्म तथा कर्म-फल के जंजाल में और अधिक उलझता जाता है और जीवन की समस्या का कोई समाधान नहीं खोज पाता। इस सन्दर्भ में एक सुन्दर गीत है “जीवन का सारा सुख प्राप्त करने की महती इच्छा के कारण, मैने यह घर बनाया किन्तु दुर्भाग्यवश सारी योजना ध्वस्त हो गई, क्योंकि घर में अप्रत्याशित रूप से आग लगा दी गई।” प्रकृति का नियम ऐसा ही है। हर व्यक्ति भौतिक जगत में योजना बनाकर रहने से सुखी बनना चाहता है, किन्तु प्रकृति का नियम इतना क्रूर है कि यह उस योजना में आग लगा देता है। सकामकर्मी अपनी योजनाओं से सुखी नहीं रहता, न ही सुख के लिए उसकी निरन्तर दौड़धूप से उसे कोई तृप्ति मिलती है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.