श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  3.5.43 
विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे
कृतावतारस्य पदाम्बुजं ते ।
व्रजेम सर्वे शरणं यदीश
स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥ ४३ ॥
 
शब्दार्थ
विश्वस्य—विराट ब्रह्माण्ड के; जन्म—सृजन; स्थिति—पालन; संयम-अर्थे—प्रलय के लिए भी; कृत—धारण किया हुआ या स्वीकृत; अवतारस्य—अवतार का; पद-अम्बुजम्—चरणकमल; ते—आपके; व्रजेम—शरण में जाते है; सर्वे—हम सभी; शरणम्—शरण; यत्—जो; ईश—हे भगवान्; स्मृतम्—स्मृति; प्रयच्छति—प्रदान करके; अभयम्—साहस; स्व-पुंसाम्— भक्तों का ।.
 
अनुवाद
 
 हे प्रभु, आप विराट जगत के सृजन, पालन तथा संहार के लिए अवतरित होते हैं इसलिए हम सभी आपके चरणकमलों की शरण ग्रहण करते हैं, क्योंकि ये चरण आपके भक्तों को सदैव स्मृति तथा साहस प्रदान करने वाले हैं।
 
तात्पर्य
 विराट जगत की सृष्टि, पालन तथा प्रलय के लिए ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर (शिव) तीन अवतार हैं। ये भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के नियंत्रक अथवा स्वामी हैं, जो दृश्य जगत के कारण है। विष्णु सतोगुण के स्वामी हैं, ब्रह्मा रजोगुण के तथा महेश्वर तमोगुण के। प्रकृति के गुणों के अनुसार भक्तों के विभिन्न प्रकार हैं। सतोगुणी लोग भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं, रजोगुणी लोग ब्रह्मा की पूजा करते हैं तथा तमोगुणी लोग शिव की पूजा करते हैं। ये तीनों देव भगवान् कृष्ण के अवतार हैं, क्योंकि कृष्ण आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं। देवतागण सीधे भगवान् के चरणकमलों का निर्देश ग्रहण करते हैं, विभिन्न अवतारों का नहीं। किन्तु भौतिक जगत में विष्णु अवतार की पूजा देवताओं द्वारा सीधे की जाती है। विभिन्न शास्त्रों से पता चलता है कि देवतागण विष्णु के पास क्षीर सागर में जाते हैं और जब कभी विश्व के काम-काज के प्रशासन में कोई कठिनाई आती है, तो वे अपनी समस्याओं के लिए निवेदन करते हैं। यद्यपि ब्रह्मा तथा शिव भगवान् के अवतार हैं, किन्तु वे विष्णु की पूजा करते हैं, और इस प्रकार उनकी गणना भी देवताओं में होती है, भगवान् के रूप में नहीं। विष्णु की पूजा करने वाले व्यक्ति देवता कहलाते हैं और जो ऐसा नहीं करते वे असुर कहलाते हैं। विष्णु सदैव देवताओं का पक्ष लेते हैं, किन्तु ब्रह्मा तथा शिव कभी-कभी असुरों का पक्ष भी लेते हैं। ऐसा नहीं है कि उनमें रुचि लेने से वे उनके समान बन जाते हैं, अपितु कभी-कभी असुरों पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए वे ऐसा कुछ करते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥