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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.6.26 
सत्त्वं चास्य विनिर्भिन्नं महान्धिष्ण्यमुपाविशत् ।
चित्तेनांशेन येनासौ विज्ञानं प्रतिपद्यते ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
सत्त्वम्—चेतना; —भी; अस्य—विराट रूप की; विनिर्भिन्नम्—पृथक् से प्रकट होकर; महान्—समग्र शक्ति, महत् तत्त्व; धिष्ण्यम्—नियंत्रण समेत; उपाविशत्—प्रविष्ट हुई; चित्तेन अंशेन—अपनी अंश चेतना समेत; येन—जिससे; असौ—जीव; विज्ञानम्—विशिष्ट ज्ञान; प्रतिपद्यते—अनुशीलन करता है ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् जब विराट रूप से उसकी चेतना पृथक् होकर प्रकट हुई तो समग्र शक्ति अर्थात् महतत्त्व अपने चेतन अंश समेत प्रविष्ट हुआ। इस तरह जीव विशिष्ट ज्ञान को अवधारण करने में समर्थ होता है।
 
 
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