जो जीव रुद्र के संगी हैं, वे प्रकृति के तीसरे गुण अर्थात् तमोगुण में विकास करते हैं। वे पृथ्वीलोकों तथा स्वर्गलोकों के बीच आकाश में स्थित होते हैं।
तात्पर्य
आकाश का यह मध्य भाग भुवर्लोक कहलाता है, जिसकी पुष्टि श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती तथा श्रील जीव गोस्वामी दोनों ने की है। भगवद्गीता में कहा गया है कि जिनमें रजोगुण प्रधान होता है वे मध्य भाग में स्थित रहते हैं। जो लोग सतोगुण में स्थित हैं, वे देवताओं के क्षेत्रों में भेज दिए जाते हैं; जो रजोगुण में स्थित होते हैं, वे मानव समाज में रखे जाते हैं तथा जो लोग तमोगुण में स्थित हैं, वे पशुओं या प्रेतों के समाज में स्थान पाते हैं। इस निष्कर्ष में कोई विरोधाभास नहीं है। असंख्य जीव ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों में फैले हुए हैं और इस तरह भौतिक प्रकृति-गुणों के अन्तर्गत अपनी अपनी गुणताओं के अनुसार स्थित रहते हैं।
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