तत्पश्चात् विराट रूप की बाहुओं से संरक्षण शक्ति उत्पन्न हुई और ऐसी शक्ति के प्रसंग में समाज का चोर-उचक्कों के उत्पातों से रक्षा करने के सिद्धान्त का पालन करने से क्षत्रिय भी अस्तित्व में आये।
तात्पर्य
जिस तरह ब्राह्मण दिव्य वैदिक ज्ञान के प्रति विशेष उन्मुखता के फलस्वरूप जाने जाते हैं उसी तरह क्षत्रिय भी चोर-उचक्कों जैसे उपद्रवी तत्त्वों से समाज की रक्षा करने की शक्ति द्वारा पहचाने जाते हैं। अनुव्रत: शब्द सार्थक है। जो व्यक्ति चोर-उचक्कों से समाज की रक्षा करके क्षत्रिय सिद्धान्तों का पालन करता है, वह क्षत्रिय कहलाता है, केवल जन्म से कोई क्षत्रिय नहीं होता। जाति प्रथा की धारणा सदैव गुण पर आधारित होती है, जन्म की योग्यता पर नहीं। जन्म तो बाह्य अवधारणा है, यह वर्णों तथा विभागों का मुख्य लक्षण नहीं है। भगवद्गीता (१८.४१-४४) में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों के गुणों का विशेष रूप से उल्लेख हुआ है और यह समझा जाता है कि किसी समूह विशेष से सम्बन्धित होने के पूर्व ऐसे समस्त गुणों की आवश्यकता होती है।
भगवान् विष्णु को समस्त वैदिक शास्त्रों में पुरुष कहा गया है। कभी-कभी जीवों को भी पुरुष कहा जाता है यद्यपि वे अनिवार्यत: पुरुष-शक्ति (पराशक्ति या परा प्रकृति) अर्थात् पुरुष की परा शक्ति हैं। पुरुष (भगवान्) की बहिरंगा शक्ति द्वारा मोहित होकर जीव भ्रमवश अपने को पुरुष समझने लगते हैं, यद्यपि उनमें ऐसे कोई गुण नहीं होते। भगवान् में रक्षा करने की शक्ति होती है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर, इन तीनों देवताओं में से पहले में सृजन की शक्ति होती है, दूसरे में रक्षा करने की तथा तीसरे में संहार करने की शक्ति होती है। इस श्लोक में पुरुष शब्द सार्थक है, क्योंकि क्षत्रियों से आशा की जाती है कि वे प्रजाओं को अर्थात् थल तथा जल में उत्पन्न हुए सबों को संरक्षण प्रदान करने में भगवान् पुरुष का प्रतिनिधित्व करेंगे। अतएव संरक्षण मनुष्य तथा पशु दोनों ही के निमित्त है। आधुनिक समाज में प्रजा को चोर-उचक्कों से सुरक्षित नहीं रखा जाता। आधुनिक प्रजातंत्र राज्य जिसमें क्षत्रिय हैं ही नहीं वैश्यों तथा शूद्रों की सरकार है और पहले की तरह यह ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों की सरकार नहीं है। महाराज युधिष्ठिर तथा उनके पौत्र महाराज परीक्षित विशिष्ट प्रकार के क्षत्रिय राजा थे क्योंकि उन्होंने सभी मनुष्यों तथा पशुओं सभी को संरक्षण प्रदान किया। जब साक्षात् कलि ने एक गाय का बध करना चाहा तो महाराज परीक्षित तुरन्त उस दुष्ट का बध करने के लिए सन्नद्ध हो गये और कलि को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। यह एक पुरुष का अथवा भगवान् विष्णु के प्रतिनिधि का लक्षण है। वैदिक सभ्यता के अनुसार, योग्य क्षत्रिय राजा को भगवान् जैसा सम्मान प्रदान किया जाता है, क्योंकि वह प्रजा को संरक्षण प्रदान करके भगवान् का प्रतिनिधित्व करता है। आधुनिक निर्वाचित राज्याध्यक्ष चोरी के मामलों में भी संरक्षण नहीं दे पाते, अतएव मनुष्य को बीमा कम्पनी का संरक्षण प्राप्त करना पड़ता है। आधुनिक मानव समाज की समस्याएँ योग्य ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों के अभाव एवं तथाकथित सामान्य मताधिकार द्वारा वैश्यों तथा शूद्रों के अत्यधिक प्रभाव के कारण हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.