श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  3.6.39 
अतो भगवतो माया मायिनामपि मोहिनी ।
यत्स्वयं चात्मवर्त्मात्मा न वेद किमुतापरे ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
अत:—इसलिए; भगवत:—ईश्वरीय; माया—शक्तियाँ; मायिनाम्—जादूगरों को; अपि—भी; मोहिनी—मोहने वाली; यत्— जो; स्वयम्—अपने से; च—भी; आत्म-वर्त्म—आत्म-निर्भर; आत्मा—आत्म; न—नहीं; वेद—जानता है; किम्—क्या; उत— विषय में कहना; अपरे—अन्यों के ।.
 
अनुवाद
 
 पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की आश्चर्यजनक शक्ति जादूगरों को भी मोहग्रस्त करने वाली है। यह निहित शक्ति आत्माराम भगवान् तक को अज्ञात है, अत: अन्यों के लिए यह निश्चय ही अज्ञात है।
 
तात्पर्य
 भले ही कूपमण्डूक दार्शनिक तथा विज्ञान एवं गणितीय गणना के लौकिक बखेड़ेबाज पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की अचिन्त्य शक्ति में विश्वास न करें, किन्तु कभी-कभी वे मनुष्य तथा प्रकृति की अद्भुत जादूगरी से चकरा जाते हैं। लौकिक जगत के ऐसे जादूगर तथा बाजीगर भगवान् के दिव्य कार्यकलापों की जादूगरी से सचमुचही चकरा जाते हैं, किन्तु वे अपने मोह को यह कहकर समंजित करने का प्रयास करते हैं कि यह सब पौराणिक कल्पना है। किन्तु परम शक्तिमान पुरुष में कुछ भी असम्भव या पौराणिक नहीं है। लौकिक विवादप्रिय लोगों के लिए सबसे आश्चर्यजनक पहेली यह है कि एक ओर जहाँ वे परम पुरुष की असीम शक्ति की लम्बाई-चौड़ाई की गणना करने में लगे रहते हैं, वहीं उनके श्रद्धालु भक्तजन व्यवहार जगत में भगवान् की अद्भुत जादूगरी की प्रशंसा करने मात्र से भवबन्धन से मुक्त कर दिये जाते हैं। भगवद्भक्त खाते, सोते, काम करते—इन सभी परिस्थितियों में जिन-जिन वस्तुओं के सम्पर्क में आते हैं उनमें वे आश्चर्यमय कुशलता देखते हैं। वटवृक्ष के छोटे से फल में हजारों छोटे-छोटे बीज होते हैं और प्रत्येक बीज में एक अन्य वृक्ष की शक्ति छिपी रहती है और इसमें भी कार्यकारण के रूप में लाखों ऐसे फलों की शक्ति निहित होती है। अत: वृक्ष तथा बीज भक्तों को भगवान् के कार्यकलापों के विषय में ध्यान करने में लगाते हैं जबकि लौकिक विवादप्रिय लोग अपना समय शुष्क चिन्तन तथा मनोरथ में व्यर्थ गँवाते हैं, जो इस जीवन में तथा अगले जीवन दोनों में ही निष्फल होता है। अपने चिन्तन से गर्वित वे कभी भी वटवृक्ष के सरल छिपे हुए कार्यकलापों की प्रशंसा नहीं करते। ऐसे बेचारे चिन्तकों के भाग्य में निरन्तर पदार्थ में फंसे रहना बदा है।
 
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