किन्तु हे महोदय, मैं आपका कृतज्ञ हूँ, क्योंकि अब मैं समझ सकता हूँ कि यह भौतिक जगत साररहित है यद्यपि यह वास्तविक प्रतीत होता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपके चरणों की सेवा करने से मेरे लिए इस मिथ्या विचार को त्याग सकना सम्भव हो सकेगा।
तात्पर्य
बद्धजीव के कष्ट सतही होते हैं और उनका कोई वास्तविक महत्त्व नहीं होता जिस तरह स्वप्न में किसी के सिर को काटने का कोई महत्त्व नहीं होता। यद्यपि यह कथन सिद्धान्त रूप में अतिसत्य है फिर भी सामान्य व्यक्ति या आध्यात्मिक पथ के नवजिज्ञासु के लिए इसकी अनुभूति कर पाना अतीव कठिन है। किन्तु मैत्रेय मुनि जैसे महान् ब्रह्मवादियों के चरणों की सेवा करने से तथा उनकी निरन्तर संगति करने से मनुष्य इस मिथ्या विचार को त्याग सकता है कि आत्मा को भौतिक क्लेश भोगना पड़ता है।
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