सृष्ट्वा—सृष्टि करके; अग्रे—प्रारम्भ में; महत्-आदीनि—सम्पूर्ण भौतिक शक्ति आदि की; स-विकाराणि—इन्द्रिय विषयों सहित; अनुक्रमात्—विभेदन की क्रमिक विधि द्वारा; तेभ्य:—उसमें से; विराजम्—विराट रूप; उद्धृत्य—प्रकट करके; तम्—उसमें; अनु—बाद में; प्राविशत्—प्रवेश किया; विभु:—परमेश्वर ने ।.
अनुवाद
सम्पूर्ण भौतिक शक्ति अर्थात् महत् तत्त्व की सृष्टि कर लेने के बाद तथा इन्द्रियों और इन्द्रिय विषयों समेत विराट रूप को प्रकट कर लेने पर परमेश्वर उसके भीतर प्रविष्ट हो गये।
तात्पर्य
मैत्रेय मुनि के उत्तरों से पूरी तरह तुष्ट होकर विदुर भगवान् के सृजन कार्य के शेष अंशों को भी समझना चाह रहे थे जिनका संकेत पिछली कथाओं से उन्होंने प्राप्त किया था।
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