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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.7.23 
यस्मिन् दशविध: प्राण: सेन्द्रियार्थेन्द्रियस्त्रिवृत् ।
त्वयेरितो यतो वर्णास्तद्विभूतीर्वदस्व न: ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
यस्मिन्—जिसमें; दश-विध:—दस प्रकार की; प्राण:—प्राणवायु; —सहित; इन्द्रिय—इन्द्रियाँ; अर्थ—रुचि; इन्द्रिय:— इन्द्रियों की; त्रि-वृत्—जीवनी शक्ति (बल) के तीन प्रकार; त्वया—आपके द्वारा; ईरित:—विवेचित; यत:—जिससे; वर्णा:— चार विभाग; तत्-विभूती:—पराक्रम; वदस्व—कृपया वर्णन करें; न:—मुझसे ।.
 
अनुवाद
 
 हे महान् ब्राह्मण, आपने मुझे बताया है कि विराट रूप तथा उनकी इन्द्रियाँ, इन्द्रिय विषय तथा दस प्रकार के प्राण तीन प्रकार की जीवनीशक्ति के साथ विद्यमान रहते हैं। अब, यदि आप चाहें तो कृपा करके मुझे विशिष्ट विभागों (वर्णों) की विभिन्न शक्तियों का वर्णन करें।
 
 
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