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श्लोक 3.7.24  |
यत्र पुत्रैश्च पौत्रैश्च नप्तृभि: सह गोत्रजै: ।
प्रजा विचित्राकृतय आसन् याभिरिदं ततम् ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
यत्र—जिसमें; पुत्रै:—पुत्रों; च—तथा; पौत्रै:—पौत्रों; च—भी; नप्तृभि:—नातियों; सह—के सहित; गोत्र-जै:—एक ही परिवार की; प्रजा:—सन्तानें; विचित्र—विभिन्न प्रकार की; आकृतय:—इस तरह से की गई; आसन्—है; याभि:—जिससे; इदम्—ये सारे लोक; ततम्—विस्तार करते हैं ।. |
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अनुवाद |
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हे प्रभु, मेरे विचार से पुत्रों, पौत्रों तथा परिजनों के रूप में प्रकट शक्ति (बल) सारे ब्रह्माण्ड में विभिन्न रूपों तथा योनियों में फैल गयी है। |
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