प्रजापतीनां स पतिश्चक्लृपे कान् प्रजापतीन् ।
सर्गांश्चैवानुसर्गांश्च मनून्मन्वन्तराधिपान् ॥ २५ ॥
शब्दार्थ
प्रजा-पतीनाम्—ब्रह्मा इत्यादि देवताओं के; स:—वह; पति:—अग्रणी; चकॢपे—निश्चय किया; कान्—जिस किसी को; प्रजापतीन्—जीवों के पिताओं; सर्गान्—सन्तानें; च—भी; एव—निश्चय ही; अनुसर्गान्—बाद की सन्तानें; च—भी; मनून्— मनुओं को; मन्वन्तर-अधिपान्—तथा ऐसों के परिवर्तन ।.
अनुवाद
हे विद्वान ब्राह्मण, कृपा करके बतायें कि किस तरह समस्त देवताओं के मुखिया प्रजापति अर्थात् ब्रह्मा ने विभिन्न युगों के अध्यक्ष विभिन्न मनुओं को स्थापित करने का निश्चय किया। कृपा करके मनुओं का भी वर्णन करें तथा उन मनुओं की सन्तानों का भी वर्णन करें।
तात्पर्य
मानव जाति या मनुष्य-सर मनुओं से उत्पन्न हुई जो प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र तथा पौत्र हैं। मनु की
सन्तानें समस्त विभिन्न लोकों में निवास करती हैं और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर शासन करती हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥