हे मित्रा के पुत्र, कृपा करके इस बात का वर्णन करें कि किस तरह पृथ्वी के ऊपर के तथा उसके नीचे के लोक स्थित हैं और उनकी तथा पृथ्वी लोकों की प्रमाप का भी उल्लेख करें।
तात्पर्य
यस्मिन् विज्ञाते सर्वमेवं विज्ञातं भवति। यह वैदिक स्तोत्र जोर देकर इस बात को घोषित करता है कि भगवान् का भक्त भगवान् से सम्बन्धित समस्त भौतिक तथा आध्यात्मिक वस्तुओं को जानता है। भक्तगण केवल भावुक ही नहीं होते जैसाकि कुछ अल्पज्ञों की भ्रान्त धारणा है। उनका दिशा बोध व्यावहारिक होता है। वे हर विद्यमान वस्तु को जानते हैं तथा विभिन्न सृष्टियों में भगवान् के आधिपत्य को सविस्तार जानते हैं।
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