तिर्यङ्मानुषदेवानां सरीसृपपतत्त्रिणाम् ।
वद न: सर्गसंव्यूहं गार्भस्वेदद्विजोद्भिदाम् ॥ २७ ॥
शब्दार्थ
तिर्यक्—मानवेतर; मानुष—मानव प्राणी; देवानाम्—अतिमानव प्राणियों या देवताओं का; सरीसृप—रेंगने वाले प्राणी; पतत्त्रिणाम्—पक्षियों का; वद—कृपया वर्णन करें; न:—मुझसे; सर्ग—उत्पत्ति; संव्यूहम्—विशिष्ट विभाग; गार्भ—गर्भस्थ; स्वेद—पसीना; द्विज—द्विजन्मा; उद्भिदाम्—लोकों आदि का ।.
अनुवाद
कृपया जीवों का विभिन्न विभागों के अन्तर्गत यथा मानवेतर, मानव, भ्रूण से उत्पन्न, पसीने से उत्पन्न, द्विजन्मा (पक्षी) तथा पौधों एवं शाकों का भी वर्णन करें। कृपया उनकी पीढिय़ों तथा उपविभाजनों का भी वर्णन करें।
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