श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.7.28 
गुणावतारैर्विश्वस्य सर्गस्थित्यप्ययाश्रयम् ।
सृजत: श्रीनिवासस्य व्याचक्ष्वोदारविक्रमम् ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
गुण—प्रकृति के गुणों के; अवतारै:—अवतारों का; विश्वस्य—ब्रह्माण्ड के; सर्ग—सृष्टि; स्थिति—पालन; अप्यय—संहार; आश्रयम्—तथा चरम विश्राम; सृजत:—स्रष्टा का; श्रीनिवासस्य—भगवान् का; व्याचक्ष्व—कृपया वर्णन करें; उदार—उदार; विक्रमम्—विशिष्ट कार्यकलाप ।.
 
अनुवाद
 
 कृपया प्रकृति के गुणावतारों—ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर—का भी वर्णन करें। कृपया पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के अवतार तथा उनके उदार कार्यकलापों का भी वर्णन करें।
 
तात्पर्य
 यद्यपि ब्रह्मा, विष्णु, तथा महेश्वर, जो कि भौतिक प्रकृति के तीन अवतार हैं, विराट जगत की सृष्टि, पालन तथा संहार के प्रमुख देव हैं, किन्तु वे अन्तिम अधिकारी नहीं हैं। पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण चरम लक्ष्य या समस्त कारणों के कारण हैं। वे आश्रय हैं अर्थात् समस्त वस्तुओं के अन्तिम विश्राम हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥