श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.7.29 
वर्णाश्रमविभागांश्च रूपशीलस्वभावत: ।
ऋषीणां जन्मकर्माणि वेदस्य च विकर्षणम् ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
वर्ण-आश्रम—सामाजिक पदों तथा आध्यात्मिक संस्कृति के चार विभाग; विभागान्—पृथक्-पृथक् विभागों; च—भी; रूप—निजी स्वरूप; शील-स्वभावत:—निजी चरित्र; ऋषीणाम्—ऋषियों के; जन्म—जन्म; कर्माणि—कार्यकलाप; वेदस्य—वेदों के; च—तथा; विकर्षणम्—कोटियों में विभाजन ।.
 
अनुवाद
 
 हे महर्षि, कृपया मानव समाज के वर्णों तथा आश्रमों के विभाजनों का वर्णन उनके लक्षणों, स्वभाव तथा मानसिक संतुलन एवं इन्द्रिय नियंत्रण के स्वरूपों के रूप के अनुसार करें। कृपया महर्षियों के जन्म तथा वेदों के कोटि-विभाजनों का भी वर्णन करें।
 
तात्पर्य
 मानव समाज के चार वर्ण—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद चार आश्रम—ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यासी—ये सभी विभाजन गुण, शिक्षा, संस्कृति तथा मन एवं इन्द्रियों पर संयम बरतने से उपलब्ध आध्यात्मिक प्रगतियाँ हैं। ये समस्त विभाग प्रत्येक व्यक्ति के विशिष्ट स्वभाव पर आधारित हैं, जन्म के सिद्धान्त पर नहीं। इस श्लोक में जन्म का उल्लेख नहीं हुआ है, क्योंकि जन्म सार हीन है। इतिहास में विदुर शूद्राणी माता से उत्पन्न होने के लिए प्रसिद्ध हैं; फिर भी योग्यता के अनुसार वे ब्राह्मण से भी बढक़र हैं, क्योंकि वे यहाँ पर महर्षि मैत्रेय के शिष्य रूप में दिखते हैं। जब तक कोई कम से कम ब्राह्मण-योग्यता प्राप्त न कर ले तब तक वह वैदिक स्तोत्रों को नहीं समझ सकता। महाभारत भी वेदों का एक विभाग है, किन्तु यह स्त्रियों, शूद्रों तथा द्विजबन्धुओं अर्थात् उच्चवर्ग की अयोग्य सन्तानों के लिए है। समाज का अल्पज्ञ वर्ग केवल महाभारत का अध्ययन करके वैदिक उपदेशों का लाभ उठा सकता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥