कृपया विभिन्न यज्ञों के विस्तारों तथा योग शक्तियों के मार्गों, ज्ञान के वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) तथा भक्ति-मय सेवा का उनके विधि-विधानों सहित वर्णन करें।
तात्पर्य
यहाँ पर तन्त्रम् शब्द महत्त्वपूर्ण है। कभी-कभी तन्त्रम् को भ्रान्तिवश इन्द्रियतृप्ति में लगे भौतिकतावादी व्यक्तियों का काला जादू समझ लिया जाता है, किन्तु यहाँ पर तन्त्रम् का अर्थ भक्ति का विज्ञान है, जिसका संग्रह श्रील नारद मुनि ने किया। मनुष्य भक्तिमार्ग की ऐसी विधिमयी व्याख्याओं का लाभ उठाकर भगवद्भक्ति में प्रगति कर सकता है। सांख्य दर्शन ज्ञान प्राप्ति का मूल सिद्धान्त है जैसाकि मैत्रेय मुनि द्वारा बतलाया जाएगा। देवहूति-पुत्र कपिलदेव द्वारा प्रवर्तित सांख्य दर्शन परब्रह्म के विषय में ज्ञान का असली स्रोत है। जो ज्ञान सांख्य दर्शन पर आधारित नहीं है, वह मानसिक चिन्तन है और उससे कोई वास्तविक लाभ नहीं प्राप्त हो सकता।
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