श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 7: विदुर द्वारा अन्य प्रश्न  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.7.41 
सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च तपो दानानि चानघ ।
जीवाभयप्रदानस्य न कुर्वीरन् कलामपि ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
सर्वे—सभी तरह के; वेदा:—वेदों के विभाग; च—भी; यज्ञा:—यज्ञ; च—भी; तप:—तपस्याएँ; दानानि—दान; च—तथा; अनघ—हे निष्कलुष; जीव—जीव; अभय—भौतिक पीड़ाओं से मुक्ति; प्रदानस्य—ऐसा आश्वासन देने वाले का; न—नहीं; कुर्वीरन्—बराबरी की जा सकती है; कलाम्—अंशत: भी; अपि—निश्चय ही ।.
 
अनुवाद
 
 हे अनघ, इन सारे प्रश्नों के आप के द्वारा दिए जाने वाले उत्तर समस्त भौतिक कष्टों से मुक्ति दिला सकेंगे। ऐसा दान समस्त वैदिक दानों, यज्ञों, तपस्याओं इत्यादि से बढक़र है।
 
तात्पर्य
 सबसे बड़ा दान है सामान्य जनों को संसार की चिन्ताओं से मुक्ति दिलाना। ऐसा केवल भगवान् की भक्तिमय सेवा सम्पन्न करने से ही हो सकता है। ऐसा ज्ञान अनुपमेय है। वेदों के ज्ञान का अनुशीलन करना, यज्ञ करना तथा दान देना, ये सभी मिलकर भक्ति से प्राप्त होनेवाली तथा संसार की पीड़ा से मिलने वाली शान्ति के एक अंश के भी तुल्य नहीं हैं। मैत्रेय के दान से न केवल विदुर लाभान्वित होंगे, अपितु अपनी वसुधामयी प्रकृति के कारण यह दान सभी कालों में अन्य सबों का उद्धार करेगा। इस तरह मैत्रेय अमर हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥