हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 8: गर्भोदकशायी विष्णु से ब्रह्मा का प्राकट्य  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.8.12 
चतुर्युगानां च सहस्रमप्सु
स्वपन् स्वयोदीरितया स्वशक्त्या ।
कालाख्ययासादितकर्मतन्त्रो
लोकानपीतान्दद‍ृशे स्वदेहे ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
चतु:—चार; युगानाम्—युगों के; —भी; सहस्रम्—एक हजार; अप्सु—जल में; स्वपन्—निद्रा में स्वप्न देखते हुए; स्वया— अपनी अन्तरंगा शक्ति के साथ; उदीरितया—आगे विकास के लिए; स्व-शक्त्या—अपनी निजी शक्ति से; काल-आख्यया— काल नाम से; आसादित—इस तरह व्यस्त रहते हुए; कर्म-तन्त्र:—सकाम कर्मों के मामले में; लोकान्—सारे जीवों को; अपीतान्—नीलाभ; ददृशे—देखा; स्व-देहे—अपने ही शरीर में ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् अपनी अन्तरंगा शक्ति में चार हजार युगचक्रों तक लेटे रहे और अपनी बहिरंगा शक्ति से जल के भीतर सोते हुए प्रतीत होते रहे। जब सारे जीव कालशक्ति द्वारा प्रेरित होकर अपने सकाम कर्मों के आगे के विकास के लिए बाहर आ रहे थे तो उन्होंने अपने दिव्य शरीर को नीले रंग का देखा।
 
तात्पर्य
 विष्णुपुराण में कालशक्ति का उल्लेख अविद्या के रूप में हुआ है। कालशक्ति के प्रभाव का लक्षण यह है कि मनुष्य को सकाम फलों के लिए भौतिक जगत में कार्य करना होता है। भगवद्गीता में सकामकर्मियों को मूढ या मूर्ख कहा गया है। ऐसे मूर्ख जीव कुछ क्षणिक लाभ के लिए शाश्वत बन्धन के अन्तर्गत कार्य करने के लिए अत्यधिक उत्साहित रहते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने बाद अपने बच्चों के लिए प्रभूत सम्पत्ति छोड़ पाता है, तो वह अपने जीवन में अपने को अतीव चतुर समझता है और इस क्षणिक लाभ को पाने के लिए वह सारे पापकर्मों का जोखिम उठाता है। उसे इसका ज्ञान नहीं रहता कि ऐसे कार्य उसे भवबन्धन की जंजीरों से हमेशा के लिए जकड़ कर रखेंगे। इस दूषित मनोवृत्ति तथा भौतिक पापों के कारण जीव कुल मिलाकर नीले रंग के प्रतीत होते हैं। सकाम फल के लिए कार्य करने की ऐसी प्रेरणा भगवान् की बहिरंगा शक्ति, काल, के आदेश द्वारा सम्भव हो पाती है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥