भगवान् अपनी अन्तरंगा शक्ति में चार हजार युगचक्रों तक लेटे रहे और अपनी बहिरंगा शक्ति से जल के भीतर सोते हुए प्रतीत होते रहे। जब सारे जीव कालशक्ति द्वारा प्रेरित होकर अपने सकाम कर्मों के आगे के विकास के लिए बाहर आ रहे थे तो उन्होंने अपने दिव्य शरीर को नीले रंग का देखा।
तात्पर्य
विष्णुपुराण में कालशक्ति का उल्लेख अविद्या के रूप में हुआ है। कालशक्ति के प्रभाव का लक्षण यह है कि मनुष्य को सकाम फलों के लिए भौतिक जगत में कार्य करना होता है। भगवद्गीता में सकामकर्मियों को मूढ या मूर्ख कहा गया है। ऐसे मूर्ख जीव कुछ क्षणिक लाभ के लिए शाश्वत बन्धन के अन्तर्गत कार्य करने के लिए अत्यधिक उत्साहित रहते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने बाद अपने बच्चों के लिए प्रभूत सम्पत्ति छोड़ पाता है, तो वह अपने जीवन में अपने को अतीव चतुर समझता है और इस क्षणिक लाभ को पाने के लिए वह सारे पापकर्मों का जोखिम उठाता है। उसे इसका ज्ञान नहीं रहता कि ऐसे कार्य उसे भवबन्धन की जंजीरों से हमेशा के लिए जकड़ कर रखेंगे। इस दूषित मनोवृत्ति तथा भौतिक पापों के कारण जीव कुल मिलाकर नीले रंग के प्रतीत होते हैं। सकाम फल के लिए कार्य करने की ऐसी प्रेरणा भगवान् की बहिरंगा शक्ति, काल, के आदेश द्वारा सम्भव हो पाती है।
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