श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 8: गर्भोदकशायी विष्णु से ब्रह्मा का प्राकट्य  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.8.14 
स पद्मकोश: सहसोदतिष्ठत्
कालेन कर्मप्रतिबोधनेन ।
स्वरोचिषा तत्सलिलं विशालं
विद्योतयन्नर्क इवात्मयोनि: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह; पद्म-कोश:—कमल के फूल की कली; सहसा—एकाएक; उदतिष्ठत्—प्रकट हुई; कालेन—काल के द्वारा; कर्म—सकाम कर्म; प्रतिबोधनेन—जगाते हुए; स्व-रोचिषा—अपने ही तेज से; तत्—वह; सलिलम्—प्रलय का जल; विशालम्—अपार; विद्योतयन्—प्रकाशित करते हुए; अर्क:—सूर्य; इव—सदृश; आत्म-योनि:—विष्णु से उत्पन्न ।.
 
अनुवाद
 
 जीवों के सकाम कर्म के इस समग्र रूप ने भगवान् विष्णु के शरीर से प्रस्फुटित होते हुए कमल की कली का स्वरूप धारण कर लिया। फिर उनकी परम इच्छा से इसने सूर्य की तरह हर वस्तु को आलोकित किया और प्रलय के अपार जल को सुखा डाला।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥