उस ब्रह्माण्डमय कमल पुष्प के भीतर भगवान् विष्णु परमात्मा रूप में स्वयं प्रविष्ट हो गये और जब यह इस तरह भौतिक प्रकृति के समस्त गुणों से गर्भित हो गया तो साक्षात् वैदिक ज्ञान उत्पन्न हुआ जिसे हम स्वयंभुव (ब्रह्मा) कहते हैं।
तात्पर्य
यह कमल का फूल भौतिक जगत में ब्रह्माण्ड का विराट रूप है। प्रलय के समय यह भगवान् विष्णु के उदर में घुलमिल जाता है और सृष्टि के समय प्रकट होता है। यह गर्भोदकशायी विष्णु के कारण है, जो प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं। इस रूप में भौतिक प्रकृति द्वारा बद्ध समस्त जीवों के सकाम कर्मों का सार-समाहार रहता है और इस कमल पुष्पा से सर्वप्रथम ब्रह्मा अर्थात् ब्रह्माण्ड का नियंत्रक उत्पन्न होता है। इस प्रथम उद्भूत जीव का कोई भौतिक पिता नहीं होता यद्यपि बाकी सभी के पिता होते हैं, अतएव वह स्वयम्भू कहलाता है। प्रलय के समय वह नारायण के साथ सो जाता है और जब दूसरी सृष्टि होती है, तो वह इसी तरह से उत्पन्न होता है। इस विवरण से हमें स्थूल विराट् रूप, सूक्ष्म हिरण्यगर्भ तथा भौतिक सृजन शक्ति ब्रह्मा—इन तीनों का बोध होता है।
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