ब्रह्माजी ने अपनी अनभिज्ञता से विचार किया : इस कमल के ऊपर स्थित मैं कौन हूँ? यह (कमल) कहाँ से फूटकर निकला है? इसके नीचे कुछ अवश्य होना चाहिए और जिससे यह कमल निकला है उसे जल के भीतर होना चाहिए।
तात्पर्य
प्रारम्भ में विराट जगत की सृष्टि के विषय में ब्रह्मा के चिन्तन का विषय अब भी मानसिक चिन्तकों के लिए जैसे का तैसा बना हुआ है। सर्वाधिक बद्धिमान् व्यक्ति वह है, जो अपने निजी अस्तित्व तथा सम्पूर्ण विराट जगत के कारण को ढूँढने का प्रयास करता है और इस तरह से वह परम कारण को खोजने का यत्न करता है। यदि तपस्या तथा अध्यवसाय के साथ उसका प्रयास उचित ढंग से सम्पन्न होता है, तो उसे अवश्यमेव सफलता का श्रेय प्राप्त होगा।
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