अब मैं भागवत पुराण से प्रारम्भ करता हूँ जिसे भगवान् ने प्रत्यक्ष रूप से महान् ऋषियों से उन लोगों के लाभार्थ कहा था, जो अत्यल्प आनन्द के लिए अत्यधिक कष्ट में फँसे हुए हैं।
तात्पर्य
मैत्रेय मुनि ने श्रीमद्भागवत के विषय में बोलने का प्रस्ताव रखा, क्योंकि इसकी रचना विशेष रूप से मानव समाज की समस्त समस्याओं के समाधान के लिए की गई थी और यह शिष्य परम्परा से रूढिग़त चली आ रही है। जो भाग्यशाली है, केवल वही भगवान् के शुद्ध भक्तों की संगति में श्रीमद्भागवत सुनने का सुअवसर प्राप्त कर सकता है। भौतिक शक्ति के जादू के अधीन सारे जीव स्वल्प भौतिक सुख के निमित्त ही अनेक कठिनाइयों के बन्धन में फँसे हुए हैं। वे सकाम कर्मों की उलझनों को न जानते हुए उनमें लगे रहते हैं। वे इस मिथ्या भाव के कारण कि शरीर आत्मा है, अनेकानेक मिथ्या आसक्तियों से अपने को सम्बद्ध करते हैं। वे सोचते हैं कि वे भौतिकतावादी साज सामग्री से सदा जुड़े हुए रह सकेंगे। जीवन की यह मिथ्या भ्रान्ति इतनी प्रबल होती है कि मनुष्य भगवान् की बहिरंगा शक्ति के अधीन जन्म-जन्मांतर कष्ट उठाता रहता है। यदि वह ‘भागवत’ ग्रन्थ तथा भागवत जानने वाले भक्त भागवत इन दोनों के सम्पर्क में आता है, तो ऐसा भाग्यशाली व्यक्ति भौतिक पाश से छूट जाता है। अतएव संसार के दुखी लोगों के प्रति दया के कारण श्रीमैत्रेय मुनि पहले श्रीमद्भागवत के विषय में बोलने का प्रस्ताव रख रहे हैं।
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