तत्पश्चात् वाँछित लक्ष्य प्राप्त करने में असमर्थ होकर वे ऐसी खोज से विमुख हो गये और पुन: कमल के ऊपर आ गये। इस तरह इन्द्रियविषयों को नियंत्रित करते हुए उन्होंने अपना मन परमेश्वर पर एकाग्र किया।
तात्पर्य
समाधि में सबों के परम कारण पर मन को एकाग्र करना होता है, चाहे मनुष्य को इसका ज्ञान हो या न हो कि परमेश्वर साकार हैं, निराकार हैं या अन्तर्यामी हैं। ब्रह्म में मन की एकाग्रता निश्चय ही एक प्रकार से भक्ति है। निजी इन्द्रियों के प्रयासों को रोकना और परम कारण पर चित्त को एकाग्र करना आत्मसमर्पण का लक्षण है और जब आत्मसमर्पण उपस्थित होता है, तो वह भक्ति का निश्चित लक्षण है। यदि अपने जीवन के चरम कारण को जानने की इच्छा है, तो प्रत्येक जीव को भगवान् की भक्तिमय सेवा में लगने की आवश्यकता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.