अपने सौ वर्षों के बाद जब ब्रह्मा का ध्यान पूरा हुआ तो उन्होंने वांछित ज्ञान विकसित किया जिसके फलस्वरूप वे अपने ही भीतर अपने हृदय में परम पुरुष को देख सके जिन्हें वे इसके पूर्व महानतम् प्रयास करने पर भी नहीं देख सके थे।
तात्पर्य
भगवान् को भक्तियोग के द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है—मानसिक चिन्तन के निजी प्रयास द्वारा नहीं। ब्रह्मा की आयु की गणना दिव्य वर्षों के रूप में की जाती है, जो मनुष्यों के सौर वर्षों से भिन्न होते हैं। दिव्य वर्षों की गणना भगवद्गीता (८.१७) में दी गई है : सहस्रयुगपर्यन्तम् अहर्यद् ब्रह्मणो विदु:। ब्रह्मा का एक दिन चतुर्युगों के योग के एक हजार गुना के तुल्य (गणना के अनुसार ४३००००० वर्ष) होता है। इस आधार पर ब्रह्मा एक सौ वर्षों तक ध्यान करते रहे। पूर्व इस के कि वे समस्त कारणों के कारण को समझ पाये और तब उन्होंने ब्रह्म-संहिता लिखी जिसका श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा इस तथ्य का अनुमोदन किया गया है तथा इस तथ्य की मान्यता दी गई है। इसमें ब्रह्मा ने लिखा है—गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि। इसके पूर्व कि मनुष्य भगवान् की सेवा कर पाये या उन्हें यथारूप जान पाए, उसे भगवान् की कृपा की प्रतीक्षा करनी होती है।
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