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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 8: गर्भोदकशायी विष्णु से ब्रह्मा का प्राकट्य  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.8.23 
मृणालगौरायतशेषभोग-
पर्यङ्क एकं पुरुषं शयानम् ।
फणातपत्रायुतमूर्धरत्न-
द्युभिर्हतध्वान्तयुगान्ततोये ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
मृणाल—कमल का फूल; गौर—पूरी तरह सफेद; आयत—विराट; शेष-भोग—शेषनाग का शरीर; पर्यङ्के—शय्या पर; एकम्—अकेले; पुरुषम्—परम पुरुष; शयानम्—लेटे हुए; फण-आतपत्र—सर्प के फन का छाता; आयुत—सज्जित; मूर्ध— सिर; रत्न—रत्न की; द्युभि:—किरणों से; हत-ध्वान्त—अँधेरा दूर हो गया; युग-अन्त—प्रलय; तोये—जल में ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा यह देख सके कि जल में शेषनाग का शरीर विशाल कमल जैसी श्वेत शय्या था जिस पर भगवान् अकेले लेटे थे। सारा वायुमण्डल शेषनाग के फन को विभूषित करने वाले रत्नों की किरणों से प्रदीप्त था और इस प्रकाश से उस क्षेत्र का समस्त अंधकार मिट गया था।
 
 
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