आयामत:—लम्बाई से; विस्तरत:—चौड़ाई से; स्व-मान—अपने ही माप से; देहेन—दिव्य शरीर से; लोक-त्रय—तीन (उच्चतर, मध्य तथा निम्न) लोक; सङ्ग्रहेण—पूर्ण निमग्नता द्वारा; विचित्र—नाना प्रकार का; दिव्य—दिव्य; आभरण- अंशुकानाम्—आभूषणों की किरणों से; कृत-श्रिया अपाश्रित—उन वस्त्रों तथा आभूषणों से उत्पन्न सौन्दर्य; वेष—वेश; देहम्—दिव्य शरीर ।.
अनुवाद
उनके दिव्य शरीर की लम्बाई तथा चौड़ाई असीम थी और वह तीनों लोकों—उच्च, मध्य तथा निम्न—लोकों में फैली हुई थी। उनका शरीर अद्वितीय वेश तथा विविधता से स्वत:प्रकाशित था और भलीभाँति अलंकृत था।
तात्पर्य
भगवान् के दिव्य शरीर की लम्बाई तथा चौड़ाई उन्हीं के प्रमाप से मापी जा सकती है, क्योंकि वे सम्पूर्ण विराट जगत में सर्वव्याप्त हैं। भौतिक प्रकृति की सुन्दरता उनकी निजी सुन्दरता के कारण है फिर भी वे अपनी दिव्य विविधता को सिद्ध करने के लिए सदा भव्यवेश धारण करते हैं और अलंकृत रहते हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान की प्रगति के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
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