जिस तरह चन्दन वृक्ष सुगन्धित फूलों तथा शाखाओं से सुशोभित रहता है उसी तरह भगवान् का शरीर मूल्यवान मणियों तथा मोतियों से अलंकृत था। वे आत्म-स्थित (अव्यक्त मूल) वृक्ष और विश्व के अन्य सभी के स्वामी थे। जिस तरह चन्दन वृक्ष अनेक सर्पों से आच्छादित रहता है उसी तरह भगवान् का शरीर भी अनन्त के फनों से ढका था।
तात्पर्य
यहाँ पर अव्यक्त-मूलम् शब्द महत्त्वपूर्ण है। सामान्यतया कोई भी व्यक्ति वृक्ष की जड़ें नहीं देख सकता। किन्तु जहाँ तक भगवान् का सम्बन्ध है वे स्वयं अपनी जड़ (मूल) हैं, क्योंकि उनके (चिरंतन) बने रहने का उनके अतिरिक्त कोई और पृथक् कारण नहीं है। वेदों में कहा गया है कि भगवान् स्वाश्रयाश्रय हैं। वे अपने निजी आश्रय हैं और उनका कोई अन्य आश्रय नहीं है। अतएव अव्यक्त का अर्थ स्वयं भगवान् और उन के अतिरिक्त और कोई नहीं है।
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