विशाल पर्वत की भाँति भगवान् समस्त जड़ तथा चेतन जीवों के लिए आवास की तरह खड़े हैं। वे सर्पों के मित्र हैं, क्योंकि अनन्त देव उनके मित्र हैं। जिस तरह पर्वत में हजारों सुनहरी चोटियाँ होती हैं उसी तरह अनन्त नाग के सुनहरे मुकुटों वाले हजारों फनों से युक्त भगवान् दीख रहे थे। जिस तरह पर्वत कभी-कभी रत्नों से पूरित रहता है उसी तरह उनका शरीर मूल्यवान रत्नों से पूर्णतया सुशोभित था। जिस तरह कभी-कभी पर्वत समुद्र जल में डूबा रहता है उसी तरह भगवान् कभी-कभी प्रलय-जल में डूबे रहते हैं।
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