तर्हि—अत:; एव—निश्चय ही; तत्—उसकी; नाभि—नाभि; सर:—झील; सरोजम्—कमल का फूल; आत्मानम्—ब्रह्मा; अम्भ:—प्रलय का जल; श्वसनम्—सुखाने वाली वायु; वियत्—आकाश; च—भी; ददर्श—देखा; देव:—देवता; जगत:— ब्रह्माण्ड का; विधाता—भाग्य का निर्माता; न—नहीं; अत: परम्—परे; लोक-विसर्ग—विराट जगत की सृष्टि; दृष्टि:— चितवन ।.
अनुवाद
जब ब्रह्माण्ड के भाग्य विधाता ब्रह्मा ने भगवान् को इस प्रकार देखा तो उसी समय उन्होंने सृष्टि पर नजर दौड़ाई। ब्रह्मा ने विष्णु की नाभि में झील (नाभि सरोवर) तथा कमल देखा और उसी के साथ प्रलयकारी जल, सुखाने वाली वायु तथा आकाश को भी देखा। सब कुछ उन्हें दृष्टिगोचर हो गया।
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