स्वम्—स्वयं; एव—इस प्रकार; धिष्ण्यम्—स्थित; बहु—अत्यधिक; मानयन्तम्—माननीय; यत्—जो; वासुदेव—भगवान् वासुदेव; अभिधम्—नामक; आमनन्ति—स्वीकार करते हैं; प्रत्यक्-धृत-अक्ष—भीतर झाँकने के लिए टिकी आँखें; अम्बुज- कोशम्—कमल सदृश नेत्र; ईषत्—कुछ-कुछ; उन्मीलयन्तम्—खुली हुई; विबुध—अत्यन्त विद्वान ऋषियों की; उदयाय— प्रगति के लिए ।.
अनुवाद
उस समय भगवान् संकर्षण अपने परमेश्वर का ध्यान कर रहे थे जिन्हें विद्वज्जन भगवान् वासुदेव के रूप में सम्मान देते हैं। किन्तु महान् पंडित मुनियों की उन्नति के लिए उन्होंने अपने कमलवत् नेत्रों को कुछ-कुछ खोला और बोलना शुरू किया।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.