सनत् कुमार आदि चारों कुमारों ने जो भगवान् की दिव्य लीलाओं के विषय में सब कुछ जानते थे, स्नेह तथा प्रेम से भरे चुने हुए शब्दों से लय सहित भगवान् का गुणगान किया। उस समय भगवान् संकर्षण अपने हजारों फनों को उठाये हुए अपने सिर की चमचमाती मणियों से तेज बिखेरने लगे।
तात्पर्य
भगवान् कभी-कभी उत्तमश्लोक कहलाते हैं, जिसका अर्थ है “जिसकी पूजा भक्तों द्वारा चुने शब्दों से की जाती हो।” जो भक्त भगवान् की भक्ति में स्नेह एवं प्रेम से पूर्णतया निमग्न रहता है उसके मुख से ऐसे चुने हुए शब्दों की झड़ी लग जाती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें एक छोटे से बालक ने भी, जो भगवान् का महान् भक्त था, भगवान् की लीलाओं के गुणगान के लिए चुने हुए शब्दों में उत्तम स्तुति की। दूसरे शब्दों में, मधुर स्नेह तथा प्रेम उत्पन्न हुए बिना कोई भी व्यक्ति भगवान् की स्तुति उत्कृष्ट ढंग से नहीं कर सकता।
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